नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-21
किसी भी विषय की उत्सुकता और उसे पूर्ण रूप से जान लेने की इच्छा व्यक्ति को उसके अध्ययन की ओर अग्रसर करती है। अब तक लक्षणा सिर्फ और सिर्फ अपनी उन शक्तियों को जानती थी, जो उसे सामान्य रुप से यूं ही आसानी से जन्म के साथ ही प्राप्त हुई। जिसे वह अभी तक अनुभव करते आई है
लेकिन अभी उन सुषुप्त शक्तियों को जानना शेष था। जिनकी जानकारियां न उसे थीं और ना ही कदंभ की सोच में ,,,,, कदंभ यह तो जानता था कि उसने इतने वर्षों तक परोक्ष रूप से तपस्या की हैं। और नागकुल के देवी देवताओं का सानिध्य प्राप्त करने कर अनेकों चमत्कारिक शक्तियां उन्हें स्वयं ही प्राप्त होती चली गई। लेकिन यह सच था कि लक्षणा ने अपने पूर्व जन्म की देह के त्याग के पश्चात भी अपनी साधना को विराम नहीं दिया था।
लक्षणा और भी ज्यादा एकाग्र होकर बिना शरीर के ही वह अविरल साधना में तल्लीन होती एक पवित्र आत्मा बन चुकी थी। इसलिए उसे इस जन्म में अपनी तपस्या के फलस्वरूप ही नाग कन्याओं के आशीर्वाद से लक्षणा के रूप में यह जन्म प्राप्त हुआ। जिसका उद्देश्य जन्म के पूर्व ही तय था। तब फिर भला अपना कर्तव्य निभाए शेष सृष्टि कैसे पीछे रह सकती थी।
जबकि वह खुद उस बच्ची के हर स्पर्श में एक अलग ही शक्ति का अनुभव करती। पेड़ पौधे , जंगल क्यारी में लगा फुल सब कुछ, जिन जिन को आज तक लक्षणा ने स्पर्श किया था। सब कुछ कहीं ना कहीं किसी भी कारण से स्पर्श किया रहा होंगा।
सब कुछ उसकी शक्ति से प्रभावित हुए और ऐसा नहीं कि उसे कुछ न मिला। औषधि और चमत्कारिक पौधे खुद ही चलकर उसके आंगन और उसके आसपास आकर विकसित होने लगें।और जाने अनजाने में ही शक्ति संचार बढ़ता चला गया। बिल्कुल किसी आश्रम की तरह आभामंडल उसके घर के आस-पास बनने लगा।
तब से लक्षणा अपने घुड़सवारी के शौक को पूर्ण करने के उद्देश्य से यहां वहां भटक रही थी। लेकिन कोई सामान्य अश्व भला कैसे लक्षणा की सवारी बन जाता??क्योंकि लक्षणा तो सही मायने में तलाश कर रही थी कदंभ अश्व की, जिसे उसके जन्म से पूर्व ही तैयार कर लक्षणा के साथ के लिए इस धरती पर भेज दिया गया था।
सही समय आने पर लक्षणा की मुलाकात आचार्य चित्रसेन से हुई । जिसकी उपस्थिति का भान मंदिर की घंटियों ने स्वयं शंखनाथ और मां के चमकते चेहरे एवम् अचानक बदले हुए मौसम इतने चमत्कारिक अनुभव के पश्चात भी आचार्य चित्रसेन न समझे, यह हो ही नहीं सकता था। इसलिए ही तो पहली ही मुलाकात में वे समझ गए कि कदंभ को लक्षणा को सौंप देने में या मिलवाने में कोई हर्ज नहीं है।
आचार्य चित्रसेन ने इसलिए बिना कुछ सोचे समझे दिनकर जी की बात सुन पहली ही बार में कदंभ को पुकारा। जिसने तुरंत उपस्थित होकर आचार्यवर की मनोकामना पूर्ण करते हुए लक्षणा की सवारी करवाई,,, और जानबूझकर उस रास्ते पर ले गया। जिसका उपयोग मुख्य रूप से आगे चलकर उसे नागपत्री तक पहुंचने के लिए करना होगा। कोसों दूर से लक्षणा की जानकारी के बिना दर्शन भी करवा दिए नागपत्री की परछाई से,,,!जिसे अक्सर लक्षणा अपने ख्यालों में देखा करती थी।
लक्षणा की तब से उत्सुकता, उसके व्यवहार में नजर आने लगी और वह विचलित हो गई अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु,,,,! और उसकी यही उत्सुकता उसे आज इस चरण तक ले आई थी। लेकिन अब समय आ चुका था अपनी समस्त शक्तियों को जागृत करने का, क्योंकि यह अत्यंत अनिवार्य हो गया था। तब जब कि उस विराट महासभा ने नागपत्री के दर्शन उसके स्पर्श और उसकी शक्ति को सृष्टि तक संचारित करने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ चुकी थी। और सिर्फ उसे यह जिम्मेदारी ही नहीं वरन संपूर्ण समर्थन के साथ अविरल शक्तियां भी प्लान की थी उन श्रेष्ठ शक्तियों ने तब अपने वादे से मुकरने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
शक्ति प्राप्त कर लेना और उसका सही तरीके से उपयोग करना दोनों ही अलग अलग बात है। इसके लिए साधक को यह जानना जरूरी है कि वह व्यर्थ में शक्तियां ना गवा उन शक्तियों का उपयोग सच्चे मार्ग पर करें। शक्तियों स्वयं सिद्धि के लिए नहीं होती। वरन समाज कल्याण के लिए उनका उपयोग करना श्रेष्ठ होता है। या फिर यदि उन शक्तियों का उपयोग एकांत में रहकर सिर्फ दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाए। ताकि साधक की तपस्या में कोई बाधा ना पहुंचे। तब भी ऐसी अवस्था में उसे व्यर्थ नहीं माना जाएगा।
लेकिन जब साधक दोनों ही स्थितियों से परे ऐसी शक्तियों का प्रयोग यदि शक्ति प्रदर्शन या जीविकोपार्जन या लोगों को व्यर्थ में भ्रमित कर डराने के लिए करता है । तब उन गुप्त शक्तियों का महत्व धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। और इस विषय में सार्थक को यह भी जान लेना आवश्यक है, कि एक बार यदि साधक शक्तिहीन हो गया तब उसकी दुर्गति उसके लिए अत्यंत घातक हो जाती है, क्योंकि उस समय वे शक्तियां ऐसे साधक का परित्याग करने के साथ ही साथ उसे श्रापित तौर पर ऐसी गहराइयों में ठेल देती है, कि फिर उसे दोबारा संभलने का मौका ही ना देती और उसका जीवन उसके खुद के लिए एक चुनौती बन जाता है।
लक्षणा इसलिए प्राप्त शक्तियों को गुप्त रखने के साथ-साथ उनका हर जगह गुणगान ना करना। सिर्फ विशेष आवश्यकता पड़ने पर ही उसका उपयोग करना एकांत में बिना किसी को बताये, या किसी के जानकारी के और इसके पश्चात फलीभूत हुए सफल कार्य पर अहंकार ना कर शांतिपूर्वक उस स्थान को छोड़ देना। यही एक अच्छे साधक की निशानी है।
मेरी राय है कि यदि संभव हो सके और तुम मेरी बात मानो तो मैं यही सलाह दूंगा कि यदि तुम सर्वशक्तिमान दायिनी मां आदिशक्ति की साधना कर उन्हें प्रसन्न कर दो, तो तब तुम्हारे सभी कार्य सरलता और सुगमता से होते चले जाएंगे। यही सलाह श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन को भी दी थी। और अब मैं तुम्हें दे रहा हूं। उनका साथ ही सभी कार्यों को सफल बनाने का सुगम रास्ता है।
लक्षणा मैंने कई बार नाग देवी देवताओ और नाग कन्याओं से वार्ता के समय भी सुना है कि कई ऐसी शक्तियां जब निष्फल हो जाती है , या होते हुए नजर आती है। तब उस समय सर्वशक्ति दायिनी मां आदिशक्ति ही सभी कार्यों को सफल बनाने में सक्षम होती है। मां का सरल रूप और उसकी साधना और मैं उनका विवरण तुम्हें अवश्य बताऊंगा
क्रमशः....